भारत के जलवायु लक्ष्यों पर प्रगति: एक बदलता हुआ परिदृश्य
चर्चा में क्यों?
भारत ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत जो लक्ष्य तय किए थे, उनमें से एक को पाँच साल पहले ही हासिल कर लिया है और बाकी दो लक्ष्यों के भी बेहद करीब पहुँच चुका है। यह उपलब्धि भारत को वैश्विक जलवायु नेतृत्व की ओर अग्रसर करती है, लेकिन कई संरचनात्मक और वित्तीय चुनौतियाँ भी हैं, जिनसे निपटना आवश्यक है।
1. गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता: लक्ष्य से पहले सफलता
भारत ने 2030 तक 50% विद्युत क्षमता को गैर-जीवाश्म स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य रखा था।
लेकिन 2024 तक ही भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 484.82 GW तक पहुँच गई, जिसमें से 242.78 GW (~50%) सौर, पवन, जलविद्युत और परमाणु जैसे गैर-जीवाश्म स्रोतों से आ रही है।
हालांकि:
स्थापित क्षमता तो 50% है, लेकिन वास्तविक विद्युत उत्पादन में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी सिर्फ 28% है। कारण है – सौर और पवन ऊर्जा की अनियमितता व सीमित ग्रिड क्षमताएँ।
2. कार्बन सिंक: अनुमान से तेज़ प्रगति
भारत ने वनों और वृक्षारोपण के ज़रिए 2.5–3 अरब टन CO₂ समतुल्य कार्बन सिंक विकसित करने का संकल्प लिया था।
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2021 तक भारत 2.29 अरब टन कार्बन सिंक तक पहुँच चुका था।
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यदि 2017–2021 के औसत 150 मिलियन टन प्रति वर्ष की दर से वृद्धि जारी रही, तो 2023 तक यह 2.5 अरब टन को पार कर गया होगा।
हालांकि:
यह वृद्धि मुख्यतः मोनोकल्चर वृक्षारोपण (जैसे यूकेलिप्टस आदि) से हुई है, जिनके पारिस्थितिक लाभ सीमित हैं। साथ ही, शहरीकरण, भूमि क्षरण और वन क्षेत्र पर दबाव चिंताजनक हैं।
3. उत्सर्जन तीव्रता में कमी: भारत अग्रणी
भारत ने 2030 तक 2005 की तुलना में उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक घटाने का लक्ष्य रखा था।
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2020 तक ही भारत 36% की कमी दर्ज कर चुका था।
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वर्तमान रुझानों के अनुसार भारत इस लक्ष्य को समय से पहले या अधिक हासिल कर सकता है।
हालांकि:
2020 के बाद से विश्वसनीय डेटा की कमी के कारण प्रगति की स्पष्ट निगरानी कठिन हो गई है, और स्टील, सीमेंट जैसे भारी उद्योगों में अब भी उत्सर्जन कम करने की स्पष्ट रणनीति नहीं है।
प्रमुख पहलें जो भारत को आगे बढ़ा रही हैं:
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NAPCC (राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना)
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मिशन LiFE (Lifestyle for Environment)
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ग्रीन बॉण्ड और MISHTI योजना (मैंग्रोव संरक्षण)
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अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और हरित हाइड्रोजन मिशन
चिंताएँ जो अब भी बनी हुई हैं:
1. क्षमता और उत्पादन में अंतर
हालाँकि स्थापित क्षमता उच्च है, परंतु असल उत्पादन में स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी 28% ही है। कुल ऊर्जा खपत में यह सिर्फ 6% है।
2. सौर ऊर्जा पर अधिक निर्भरता
2024 में जो 30 GW नवीकरणीय ऊर्जा जुड़ी, उसमें से 24 GW सौर ऊर्जा से आई।
पवन, जल और परमाणु ऊर्जा की गति धीमी बनी हुई है – भूमि अधिग्रहण, नीतिगत देरी और फंडिंग बाधाएँ प्रमुख कारण हैं।
3. परमाणु ऊर्जा में धीमी प्रगति
भारत का लक्ष्य है कि 2047 तक 100 GW परमाणु क्षमता हो, लेकिन 2030 तक यह केवल 17 GW तक पहुँचने की संभावना है (बजट 2025–26)।
4. कार्बन सिंक की गुणवत्ता पर चिंता
मिश्रित देशी प्रजातियों के स्थान पर एकल प्रजातियाँ लगाने से पारिस्थितिकीय लाभ सीमित हो जाते हैं।
साथ ही वन अतिक्रमण और अवैध खनन भी चिंता के विषय हैं।
5. जलवायु वित्त की कमी
विकसित देशों द्वारा $100 बिलियन प्रति वर्ष देने का वादा अब भी अधूरा है। भारत बार-बार तकनीकी और वित्तीय समर्थन की मांग कर चुका है, लेकिन पर्याप्त प्रगति नहीं हुई।
आगे के लिए क्या जरूरी है?
1. उत्पादन-केंद्रित रणनीति:
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स्मार्ट ग्रिड, उन्नत बैटरी स्टोरेज (Li-ion, Na-ion)
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पारेषण नेटवर्क का आधुनिकीकरण
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डिमांड-रिस्पॉन्स टेक्नोलॉजी
2. ऊर्जा स्रोतों में विविधता:
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पवन, जलविद्युत और परमाणु परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना
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ऑफशोर विंड और ग्रीन हाइड्रोजन को सब्सिडी व R&D सहयोग देना
3. स्थायी कार्बन सिंक:
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GIS और रिमोट सेंसिंग तकनीक से निगरानी
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मिश्रित देशी प्रजातियों को प्राथमिकता देना
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शहरी वानिकी (जैसे मियावाकी मॉडल) को प्रोत्साहन देना
4. मजबूत जलवायु वित्त:
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ग्रांट आधारित सहायता पर ज़ोर
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अंतरराष्ट्रीय निवेश आकर्षित करना
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स्वदेशी नवाचार और क्लीन टेक R&D को प्रोत्साहित करना
निष्कर्ष
भारत ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों में प्रेरक भूमिका निभाई है। कई लक्ष्य समय से पहले हासिल कर लेने के बावजूद ऊर्जा प्रणाली में सुधार, हरित वित्त, और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण की दिशा में अब भी निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
यदि नीति, तकनीक और जन सहयोग में संतुलन बना रहा, तो भारत न केवल अपने लक्ष्यों को पूरा करेगा, बल्कि एक वैश्विक जलवायु नेता के रूप में उभरेगा।
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