भारत में वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की गई है। मणिपुर प्राणी उद्यान (Manipur Zoological Garden – MZG) ने इंडिया टर्टल कंजरवेशन प्रोग्राम (ITCP) के सहयोग से पहली बार एशियाई विशाल कछुए (Asian Giant Tortoise – Manouria emys phayrei) का सफल कृत्रिम ऊष्मायन (artificial incubation) किया है। वर्ष 2025 में, एक ही घोंसले से 28 छोटे कछुए यानी हैचलिंग्स बाहर निकले, जो इस संकटग्रस्त प्रजाति के संरक्षण में मील का पत्थर साबित हुए हैं।
एशियाई विशाल कछुआ – संकटग्रस्त प्रजाति
एशियाई विशाल कछुआ, जिसे वैज्ञानिक नाम Manouria emys phayrei के तहत वर्गीकृत किया गया है, विश्व की दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल है। IUCN रेड लिस्ट के अनुसार इसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) श्रेणी में रखा गया है।
प्राकृतिक आवास और पारिस्थितिक महत्व
ये कछुए मुख्यतः पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर, नागालैंड, मिज़ोरम, असम और मेघालय में पाए जाते हैं। इसके अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में भी इन्हें देखा जाता है।
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ये जंगलों में बीज फैलाव (seed dispersal) में योगदान देते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित रहता है।
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प्राकृतिक आवासों में इनकी मौजूदगी से अन्य वन्यजीवों की जीवन शैली प्रभावित होती है और जैविक विविधता बनी रहती है।
मुख्य खतरे
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वनों की कटाई और भूमि उपयोग में बदलाव से इनके आवास घट रहे हैं।
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मांस और अवैध व्यापार के लिए शिकार।
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प्राकृतिक निवास में अवैध गतिविधियों से इनके संरक्षण में बाधा।
मणिपुर प्राणी उद्यान की पहल
मणिपुर प्राणी उद्यान ने इस संकटग्रस्त प्रजाति के संरक्षण और प्रजनन में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
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कृत्रिम ऊष्मायन में सफलता
2025 में पहली बार एक घोंसले से 28 हैचलिंग्स सफलतापूर्वक बाहर आए। यह प्रयोगात्मक प्रयास न केवल तकनीकी रूप से सफल रहा, बल्कि भविष्य में बड़े पैमाने पर प्रजनन कार्यक्रमों की नींव भी रखता है। -
प्रजनन कार्यक्रम का विस्तार
उद्यान प्रशासन योजना बना रहा है कि सालाना प्रजनन चक्र चलाया जाए और चरणबद्ध तरीके से इन कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में छोड़ा जाए। -
कर्मचारी प्रशिक्षण
21 अगस्त 2025 को 25 ज़ूकीपर और वनकर्मियों के लिए एक विशेष कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें उन्हें कछुओं की देखभाल, घोंसले की निगरानी और कृत्रिम ऊष्मायन की तकनीक सिखाई गई।
ITCP की भूमिका और भविष्य की योजना
इंडिया टर्टल कंजरवेशन प्रोग्राम (ITCP) ने इस पहल में मार्गदर्शन और तकनीकी सहयोग प्रदान किया। संस्था का उद्देश्य केवल प्रजनन ही नहीं बल्कि कछुओं के प्राकृतिक आवासों में उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना भी है।
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वैज्ञानिक रूप से प्रजनन और release की व्यवस्था।
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प्राकृतिक आवास का मूल्यांकन और उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान।
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मणिपुर में कछुओं की मौजूदा आबादी और वितरण पर अनुसंधान।
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साइट-विशिष्ट संरक्षण रणनीतियों का निर्माण।
ITCP के सहयोग से मणिपुर प्राणी उद्यान का यह प्रयास स्थानीय समुदायों और वन्यजीव संरक्षण समूहों के लिए भी प्रेरक बन गया है।
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय महत्व
मणिपुर में इस प्रजाति का सफल प्रजनन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
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जैव विविधता संरक्षण
पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध सरीसृप विविधता की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। -
नीतिगत महत्व
केंद्रीय ज़ू अथॉरिटी (CZA) ने MZG को “मीडियम ज़ू” का दर्जा दिया है, जिससे इसकी संरक्षण क्षमता बढ़ती है और भविष्य में और भी अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा। -
क्षेत्रीय गौरव
मणिपुर ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में कछुओं और अन्य सरीसृप प्रजातियों के संरक्षण में मिसाल कायम की है। यह न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे देश में वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा।
महत्व और भविष्य की दिशा
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यह उपलब्धि केवल मणिपुर के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए प्रेरणादायक है।
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भविष्य में और बड़े पैमाने पर कृत्रिम ऊष्मायन और सुरक्षित प्रजनन के माध्यम से इस संकटग्रस्त प्रजाति को उनके प्राकृतिक आवास में वापस लाने की योजना है।
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स्थानीय समुदायों की भागीदारी और जागरूकता अभियान इस सफलता को लंबे समय तक बनाए रखने में अहम भूमिका निभाएंगे।
महत्वपूर्ण तथ्य
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प्रजाति: एशियाई विशाल कछुआ (Manouria emys phayrei)
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स्थिति: गंभीर संकटग्रस्त (IUCN Red List)
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प्राकृतिक क्षेत्र: मणिपुर, नागालैंड, मिज़ोरम, असम, मेघालय
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उपलब्धि: 2025 में मणिपुर प्राणी उद्यान में पहली सफल कृत्रिम ऊष्मायन
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हैचलिंग्स: 28 नवजात कछुए एक ही घोंसले से सफलतापूर्वक बाहर आए
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सहयोगी संस्था: इंडिया टर्टल कंजरवेशन प्रोग्राम (ITCP)
मणिपुर प्राणी उद्यान और ITCP की यह पहल दर्शाती है कि अगर सही तकनीक, विशेषज्ञता और स्थानीय समर्थन मिल जाए तो संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण और पुनर्जीवन में सफलता संभव है। यह न केवल वन्यजीव प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणास्पद है, बल्कि भारत की जैव विविधता संरक्षण नीति को भी मजबूती देता है।
इस सफलता के साथ ही मणिपुर पूर्वोत्तर भारत में सरीसृप संरक्षण का नया केंद्र बन गया है, और भविष्य में अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ है।