भारत के अवसंरचना वित्त पोषण परिदृश्य में एक ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के अनुबंधों में अब इंश्योरेंस श्योरिटी बॉन्ड्स (Insurance Surety Bonds – ISBs) का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। जुलाई 2025 तक जारी किए गए ISBs का कुल मूल्य ₹10,369 करोड़ तक पहुँच चुका है। यह उपलब्धि बताती है कि बड़े पैमाने पर सार्वजनिक खरीद और निर्माण अनुबंधों में ISBs को पारंपरिक बैंक गारंटी (Bank Guarantee – BGs) के विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
आँकड़ों के अनुसार, अब तक 12 बीमा कंपनियों ने लगभग 1,600 ISBs बोली सुरक्षा (Bid Security) और 207 ISBs प्रदर्शन सुरक्षा (Performance Security) के रूप में जारी किए हैं। यह विकास न केवल वित्तीय प्रणाली की दक्षता को दर्शाता है बल्कि अवसंरचना परियोजनाओं के लिए तरलता (liquidity) उपलब्ध कराने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।
इंश्योरेंस श्योरिटी बॉन्ड क्या है?
इंश्योरेंस श्योरिटी बॉन्ड एक त्रिपक्षीय समझौता है जिसमें तीन पक्ष शामिल होते हैं:
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बीमा कंपनी (श्योरिटी) – गारंटी प्रदान करती है
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ठेकेदार (प्रिंसिपल) – अनुबंध को पूरा करने का दायित्व रखता है
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परियोजना मालिक (ऑब्लाइजी) – जिसे सुरक्षा मिलती है
इस व्यवस्था में बीमा कंपनी यह वित्तीय गारंटी देती है कि ठेकेदार अनुबंध की शर्तों का पालन करेगा। यदि ठेकेदार किसी कारणवश चूक करता है, तो बीमा कंपनी परियोजना मालिक को क्षतिपूर्ति प्रदान करती है।
पारंपरिक बैंक गारंटी में ठेकेदार को अपनी कार्यशील पूंजी (Working Capital) या बैंक लिमिट ब्लॉक करनी पड़ती है। इसके विपरीत, ISBs में यह बोझ काफी हद तक कम हो जाता है।
सरकारी पहल और नीतिगत समर्थन
भारत सरकार ने इस वित्तीय उपकरण को लोकप्रिय बनाने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं।
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वित्त मंत्रालय ने ISBs और इलेक्ट्रॉनिक बैंक गारंटी (e-BG) को सभी सरकारी खरीद प्रक्रियाओं में पारंपरिक बैंक गारंटी के समकक्ष मान्यता दी है।
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इसका मुख्य उद्देश्य है:
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ठेकेदारों के लिए पूंजी लॉक-इन कम करना
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खरीद प्रणाली में जोखिम प्रबंधन के साधनों का विविधीकरण
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बीमा क्षेत्र के माध्यम से वित्तीय गारंटी की पहुँच बढ़ाना
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NHAI ने भी इस दिशा में सक्रिय पहल की है। हाल ही में नई दिल्ली में एक कार्यशाला आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता NHAI के सदस्य (वित्त) एन.आर.वी.वी.एम.के. राजेंद्र कुमार ने की। इसमें IRDA, बीमा कंपनियाँ, वित्तीय संस्थान और अवसंरचना विशेषज्ञ शामिल हुए। इस चर्चा का मकसद ISBs के उपयोग को और व्यापक बनाना था।
अवसंरचना परियोजनाओं में ISBs के लाभ
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा निर्माण बाज़ार बनने की ओर अग्रसर है। अनुमान है कि आने वाले वर्षों में बोली गारंटी और प्रदर्शन गारंटी की वार्षिक माँग 6–8% की दर से बढ़ेगी। इस परिदृश्य में ISBs के कई फायदे हैं:
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किफायती विकल्प – बीमा कंपनियों द्वारा वसूले जाने वाले प्रीमियम अक्सर बैंक गारंटी फीस से कम होते हैं।
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पूंजी दक्षता – ठेकेदारों को कार्यशील पूंजी ब्लॉक नहीं करनी पड़ती। इससे वे अपने संसाधनों का उपयोग परियोजनाओं पर कर सकते हैं।
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तेज़ और डिजिटल प्रक्रिया – ISBs खासकर डिजिटल प्रारूप में जल्दी जारी होते हैं, जिससे समय की बचत होती है।
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विस्तृत पहुँच – छोटे और मध्यम स्तर के ठेकेदारों को भी बीमा क्षेत्र की भागीदारी से आसानी से पहुँच मिलती है।
NHAI और निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
NHAI ने ISBs को मुख्यधारा में अपनाकर उन्हें बोली सुरक्षा (Pre-Contract Bid Security) और प्रदर्शन सुरक्षा (Post-Contract Performance Security) दोनों के लिए मान्य कर लिया है। इससे निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र पर कई सकारात्मक प्रभाव पड़े हैं:
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नए और छोटे ठेकेदारों के लिए बाधाएँ कम हुई हैं।
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राजमार्ग परियोजनाओं में प्रतिस्पर्धा और भागीदारी बढ़ी है।
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अवसंरचना क्षेत्र में तरलता (Liquidity) मजबूत हुई है।
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यह कदम भारत को वैश्विक सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं (Best Practices) के अनुरूप वित्तपोषण मॉडल अपनाने में मदद करता है।
इससे स्पष्ट है कि NHAI न केवल सड़क नेटवर्क को मज़बूत बनाने पर काम कर रहा है, बल्कि वित्तीय नवाचारों के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक टिकाऊ भी बना रहा है।
मुख्य तथ्य एक नज़र में
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NHAI अनुबंधों के लिए जारी ISBs का कुल मूल्य (जुलाई 2025 तक): ₹10,369 करोड़
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जारी करने वाली कंपनियाँ: 12 बीमा कंपनियाँ
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प्रकार:
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1,600 बोली सुरक्षा (Bid Security)
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207 प्रदर्शन सुरक्षा (Performance Security)
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नियामकीय समर्थन: वित्त मंत्रालय ने ISBs को पारंपरिक बैंक गारंटी के बराबर मान्यता दी है।