भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में हथकरघा का एक विशेष स्थान है। यह न केवल एक पारंपरिक कला है, बल्कि लाखों बुनकरों की आजीविका का प्रमुख साधन भी है। हर वर्ष 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ मनाया जाता है, जो न केवल इस कला को संरक्षित करने के प्रयासों को प्रोत्साहन देता है, बल्कि बुनकरों के अद्भुत योगदान को भी सम्मानित करता है।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2025 की थीम है – “हथकरघा – महिला सशक्तिकरण, राष्ट्र सशक्तिकरण”। यह विषय इस ओर संकेत करता है कि कैसे भारत की अधिकांश हथकरघा कारीगरी महिलाओं के हाथों से आकार लेती है और यह क्षेत्र महिला सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण बन चुका है।
7 अगस्त क्यों है महत्वपूर्ण?
7 अगस्त 1905 को बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इस आंदोलन ने भारतीयों को विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर स्वदेशी हस्तनिर्मित कपड़ों को अपनाने के लिए प्रेरित किया। यह दिन भारत में आत्मनिर्भरता, कारीगरी और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बन गया।
इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत की गई, ताकि भारतीय हथकरघा परंपरा को वैश्विक पहचान मिल सके और बुनकरों को सम्मानित किया जा सके।
2025 की थीम: “हथकरघा – महिला सशक्तिकरण, राष्ट्र सशक्तिकरण”
भारत के हथकरघा क्षेत्र में लगभग 70% से अधिक कार्यबल महिलाएं हैं। वे न केवल पारंपरिक तकनीकों को जीवित रखती हैं, बल्कि परिवार और समुदाय की आर्थिक रीढ़ भी बनती हैं। इस वर्ष की थीम महिला कारीगरों की इस भूमिका को उजागर करती है। वे फैशन की दुनिया में टिकाऊ वस्त्र (Sustainable Fashion) की नायिकाएं बनकर उभरी हैं।
इन महिलाओं का योगदान केवल कला तक सीमित नहीं, बल्कि वे आत्मनिर्भर भारत की मजबूत नींव भी हैं।
भारत मंडपम में राष्ट्रीय समारोह
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2025 का मुख्य आयोजन नई दिल्ली के भारत मंडपम में हो रहा है। इस अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति द्वारा संत कबीर पुरस्कार और राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार 2024 प्रदान किए जाएंगे।
इस वर्ष कुल 24 उत्कृष्ट बुनकरों को सम्मानित किया जा रहा है, जिनमें से 5 को संत कबीर पुरस्कार और 19 को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेंगे। ये पुरस्कार पारंपरिक बुनाई और कारीगरी की उत्कृष्टता को मान्यता देते हैं।
हथकरघा: कला, पहचान और टिकाऊ भविष्य
भारत का हर राज्य अपनी अनूठी बुनाई शैलियों के लिए प्रसिद्ध है –
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चंदेरी (मध्य प्रदेश) की नाजुक कारीगरी,
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कांचीवरम (तमिलनाडु) की भव्यता,
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एरी सिल्क (असम) की पर्यावरण अनुकूल विशेषता,
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जामदानी (बंगाल) की बारीक डिज़ाइन,
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फुलकारी (पंजाब) की रंग-बिरंगी कढ़ाई,
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और शाल (कश्मीर) की महीन बुनाई।
हर हथकरघा वस्त्र एक कहानी कहता है – यह केवल वस्त्र नहीं, बल्कि एक संस्कृति, परंपरा और समुदाय की पहचान होता है।
आज जब विश्व स्लो फैशन और इको-फ्रेंडली कपड़ों की ओर बढ़ रहा है, भारतीय हथकरघा उद्योग सतत विकास का आदर्श बन रहा है।
देशभर में कार्यक्रम और गतिविधियाँ
वस्त्र मंत्रालय, राज्य सरकारें और सामाजिक संगठन मिलकर देशभर में हथकरघा दिवस को भव्य रूप से मना रहे हैं।
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विद्यालयों और कॉलेजों में भाषण, निबंध, और पोस्टर प्रतियोगिताएं
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हथकरघा प्रदर्शनियां और फैशन शो
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बुनकर मेलों में विभिन्न राज्यों की शैलियों का प्रदर्शन
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युवाओं को जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया कैंपेन और जनजागरूकता अभियान
ये सभी गतिविधियां इस बात की गवाही देती हैं कि भारत का भविष्य तभी टिकाऊ होगा, जब उसकी परंपराएं जीवित रहेंगी।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस न केवल बुनकरों के अद्भुत कौशल को सम्मानित करने का अवसर है, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का भी कार्य करता है।
“हथकरघा केवल कपड़ा नहीं, संस्कृति की बुनावट है।”
आज जरूरत है कि हम इस परंपरा को संरक्षित करें, बुनकरों को सहयोग दें और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाकर आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाएं।