भारत के विकास के उत्प्रेरक: शहरी केंद्र

भारत के विकास के केंद्र में शहरीकरण: अवसर और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत एक बड़े शहरी परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। वर्ष 2035 तक देश की शहरी जनसंख्या 67.5 करोड़ तक पहुँचने की संभावना है, जो वर्ष 2045 तक और 7 करोड़ बढ़ सकती है। यह तेज़ी से होता शहरीकरण भारत के आर्थिक और सामाजिक भविष्य को आकार देने वाला सबसे बड़ा कारक बन रहा है। लेकिन इस बदलाव के साथ कुछ गहरी चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं, जो इसकी गति और दिशा दोनों को प्रभावित कर सकती हैं।


शहर: भारत के आर्थिक भविष्य के इंजन

1. उत्पादकता के केंद्र

भारत की कुल आबादी का सिर्फ़ 3% शहरी क्षेत्र में निवास करता है, लेकिन देश के GDP में इनका योगदान लगभग 60% है। यह साफ़ संकेत है कि शहर ही असली आर्थिक इंजन हैं।

केवल 15 प्रमुख शहर — जैसे मुंबई, दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई और हैदराबाद — मिलकर GDP का लगभग 30% उत्पादन करते हैं।

इन शहरों से 2047 तक भारत की GDP में सालाना 1.5% अतिरिक्त वृद्धि की उम्मीद है।

2. समूहन के लाभ (Agglomeration Effects)

शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व और संसाधनों की सघनता के कारण उद्योग, सेवाएँ और नवाचार आपस में जुड़े रहते हैं, जिससे:

  • रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं

  • उत्पादन की लागत घटती है

  • नवाचार और स्टार्टअप्स को तेज़ी से बढ़ने का अवसर मिलता है

3. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त

संगठित और व्यवस्थित शहर व्यापार में सहूलियत, विदेशी निवेश को आकर्षण और वैश्विक कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं। यह भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर (2026) और 40 ट्रिलियन डॉलर (2047) की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में मजबूती देता है।

4. नवाचार और स्टार्टअप हब

बेंगलुरु, गुरुग्राम, हैदराबाद जैसे शहर टेक्नोलॉजी, R&D और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के केंद्र बन चुके हैं। यही शहर भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम की रीढ़ हैं।

5. सामाजिक अवसर

शहरीकरण बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और महिला सशक्तिकरण को तेज़ करता है। इससे मानव विकास संकेतकों में भी सुधार आता है।


भारत के शहरी विकास की प्रमुख चुनौतियाँ

1. यातायात और भीड़भाड़

  • औसतन एक शहरी नागरिक दिन के 1.5–2 घंटे ट्रैफिक में बिताता है

  • रांची जैसे शहर में, 14 लाख आबादी के लिए केवल 41 सार्वजनिक बसें उपलब्ध हैं

  • एशियाई विकास बैंक के अनुसार, इस अकुशलता से 22 बिलियन डॉलर सालाना की आर्थिक हानि होती है

 2. वायु प्रदूषण

  • 2023 में विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में 42 भारत के हैं

  • प्रमुख कारण: वाहनों से उत्सर्जन, निर्माण धूल, बायोमास जलाना

3. जल संकट

  • आधी से अधिक नदियाँ प्रदूषित

  • 40–50% पानी पाइपलाइन लीकेज से बर्बाद होता है

 4. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कमी

  • हर दिन 1.5 लाख टन से अधिक कचरा उत्पन्न

  • केवल एक छोटा हिस्सा ही वैज्ञानिक तरीके से निपटाया जाता है

 5. स्वच्छता का अभाव

  • अनौपचारिक बस्तियों में टॉयलेट, सीवेज और साफ पानी की भारी कमी

  • कई शहरी जल निकायों में सीवेज रिसाव बड़ी समस्या है

 6. किफायती आवास की भारी कमी

  • भारत में 1 करोड़ से अधिक किफायती घरों की कमी

  • 2030 तक यह संख्या 3 करोड़ तक पहुँच सकती है

  • झुग्गियाँ बढ़ने से सामाजिक तनाव और अपराध की संभावना भी बढ़ती है

 7. शहरी बाढ़ और जल निकासी

  • बारिश के पानी की निकासी के अभाव में शहरों में बार-बार बाढ़ की स्थिति

  • 2015 चेन्नई और 2018 केरल बाढ़ इसके प्रमुख उदाहरण

 8. नगरपालिका वित्त की कमजोरी

  • अधिकांश शहरी निकाय केंद्र सरकार पर निर्भर

  • स्थानीय कर-संग्रह और बॉन्ड बाज़ार का उपयोग नहीं हो रहा है

9. डिजिटल अवसंरचना की कमी

  • भारत के शहर इंटरनेट स्पीड, डिजिटल सेवाओं और स्मार्ट समाधानों में अभी भी सिंगापुर, सियोल जैसे शहरों से पीछे हैं

 10. शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect)

  • हरियाली की कमी और कंक्रीट संरचनाओं के कारण तापमान में बढ़ोतरी

  • इससे एसी की खपत, बिजली की मांग और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होती है


निष्कर्ष: क्या भारत तैयार है?

शहरीकरण भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने का माध्यम बन सकता है, बशर्ते हम इसे एक रणनीतिक, टिकाऊ और समावेशी दृष्टिकोण से प्रबंधित करें। स्मार्ट शहर, हरित अवसंरचना, सार्वजनिक परिवहन, डिजिटल सुविधाएँ और सशक्त स्थानीय शासन ही भारत के शहरी भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं।

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